अब्दुल सत्तर इदी जीवनी Biography of Abdul Sattar Edhi in Hindi

अब्दुल सत्तर इदी पाकिस्तान के सुप्रसिद्ध मानवतावादी एवं इदी फाउण्डेशन के अध्यक्ष थे। इदी फाउन्डेशन पाकिस्तान एवं विश्व के अन्य देशों में कार्यरत है। उनकी पत्नी बेगम बिलकिस इदी, बिलकिस इदी फाउन्डेशन की अध्यक्षा हैं। पति-पत्नी को सम्मिलित रूप से सन् १९८६ का रमन मैगसेसे पुरस्कार समाज-सेवा के लिये प्रदान किया गया था। उन्हे लेनिन शान्ति पुरस्कार एवं बलजन पुरस्कार भी मिले हैं। गिनीज विश्व कीर्तिमान के अनुसार इदी फाउन्डेशन के पास संसार की सबसे बड़ी निजी एम्बुलेंस सेवा हैं।

मौलाना एधी सन् १९२८ में भारत के गुजरात राज्य के बनतवा () शहर में पैदा हुए थे। उनके पिता कपड़े के व्यापारी थे। वह जन्मजात लीडर थे और शुरू से ही अपने दोस्तों की छोटे-छोटे काम और खेल-तमाशे करने पर होसला अफ़ज़ाई करते थे। जब अनकी मां उनको स्कूल जाते समय दो पैसे देतीं थी तो वह उन में से एक पैसा खर्च कर लेते थे और एक पैसा किसी अन्य जरूरतमंद को दे देते थे।

सन् 1947 में भारत विभाजन के बाद उनका परिवार भारत से पाकिस्तान आया और कराची में बस गया। 1951 में आपने अपनी जमा पूंजी से एक छोटी सी दुकान ख़रीदी और उसी दुकान में आपने एक डाक्टर की मदद से छोटी सी डिस्पेंसरी खोली।

अब्दुल सत्तार ईदी ने अपने समूचे जीवन में सादगी को मन, वचन और कर्म से अपनाया। वे नीले रंग के कपड़े पहनते हैं  और जिन्ना टोपी पहनते हैं। पिछले साठ से अधिक वर्षों के दौरान उन्होंने समूचे देश में अपने सेंटर्स बनाए हैं। वे  अनाथालय, मानसिक रोगियों के लिए घर, नशे के शिकार लोगों के लिए पुनर्वास केन्द्र, सैकड़ों एम्बुलेंसेंज को चलवाते हैं।  परित्यक्त महिलाओं, बच्चों, बीमारों के लिए उन्होंने होस्टल्स भी बनवाए हैं। उन्होंने गरीबों को भोजन दिया और मरने के  बाद उन्हें दफनाने के काम भी आए। उनमें दयाभाव कूट-कूटकर भरा है।

जिन्ना की ही तरह एक गुजराती मुस्लिम ईदी वर्ष 1928 में जूनागढ़ के बांतवा में पैदा हुए थे। विभाजन के बाद हुए दंगों  के बाद वे कराची पहुंचे और उन्होंने शहर को अपना घर बनाया। उनका परिवार इस्लामिक समुदाय मेमनों का है और वे  इसकी एक धर्मार्थ शाखा में काम करने लगे। पर जब कुछ समय बाद उन्हें पता चला कि मेमनों की यह संस्था केवल  मेमनों के लिए काम करती है तो उन्होंने इसका विरोध किया। वे संस्था से अलग हो गए और उन्होंने अपने घर के बाहर  खुद के सोने के लिए सीमेंट की बेंच बनवाई ताकि अगर रात में कोई मदद मांगने आए तो उसे निराशा नहीं हो।

दान का काम

ईदी ने गरीबों की सहायता के लिए अपनी जिंदगी को समर्पित करने का संकल्प किया और अगले साठ वर्षों में उन्होंने अकेले ही पाकिस्तान में कल्याण का चेहरा बदल दिया। ईधी ने ईधी फाउंडेशन की स्थापना की इसके अतिरिक्त, उन्होंने पांच हजार रुपए की शुरुआती राशि के साथ ईधी ट्रस्ट नामक एक कल्याण ट्रस्ट की स्थापना की, इस ट्रस्ट को बाद में बिल्कीस ईधी ट्रस्ट के रूप में नाम दिया गया। गरीबों के लिए अभिभावक के रूप में माना जाता है, ईदी ने कई दान प्राप्त करना शुरू कर दिया, जिससे उन्हें अपनी सेवाओं का विस्तार करने की अनुमति मिल गई। इस दिन तक, ईदी फाउंडेशन दोनों आकार और सेवा में बढ़ रहा है और वर्तमान में पाकिस्तान में सबसे बड़ा कल्याण संगठन है। इसकी स्थापना के बाद से, ईधी फाउंडेशन ने 20,000 से अधिक छोड़ दिया शिशुओं को बचाया है, 50,000 से अधिक अनाथों के पुनर्वास किए हैं और 40,000 से अधिक नर्सों को प्रशिक्षित किया है। यह ग्रामीण और शहरी पाकिस्तान में 330 से अधिक कल्याण केंद्र चलाता है जो कि भोजन के रसोई घरों, पुनर्वास घरों, परित्यक्त महिलाओं और बच्चों के लिए आश्रयों, और मानसिक रूप से विकलांगों के लिए क्लीनिक के रूप में काम करता है।

ईधी द्वारा स्थापित ईधी फाउंडेशन, दुनिया की सबसे बड़ी स्वयंसेवी एम्बुलेंस सेवा (उनमें से 1,500 ऑपरेटिंग) चलाता है और 24 घंटे की आपातकालीन सेवाएं प्रदान करता है यह नशीली दवाओं और मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों के लिए नि: शुल्क नर्सिंग होम, अनाथों, क्लीनिक, महिला आश्रयों और पुनर्वसन केन्द्रों का संचालन भी करता है। इसने अफ्रीका, मध्य पूर्व, काकेशस क्षेत्र, पूर्वी यूरोप और संयुक्त राज्य में राहत कार्यों को चलाया है, जहां उसने 2005 में तूफान कैटरीना के बाद सहायता प्रदान की थी।

ईदी फाउंडेशन का गठन

मजरुह सुल्तानपुरी साहब का एक बड़ा मशहूर शेर है ‘मैं अकेला ही चला था जानिब ए मंज़िल, मगर लोग आते गए कारवां बनता गया’.

अब्दुल साहब पर ये शेर सोलह आने सही बैठता है. जब उन्होंने अपने समाज से लड़ कर एक छोटी सी जगह में डिस्पेंसरी खोली, तब उन्हें शायद यह मालूम भी नहीं था कि एक दिन उनकी यही डिस्पेंसरी दुनिया के सबसे बड़े जनकल्याण संगठनों में अपना नाम करेगी.

उनके नेक इरादों से प्रभावित होकर चिकित्सकों ने लोगों का निःशुल्क इलाज किया, मेडिकल कॉलेज के छात्र उनकी सहायता के लिए आने लगे, लोगों की सहायता उन्हें मिलने लगी और देखते ही देखते अब्दुल साहब द्वार शुरू किये गए संगठन को ‘ईदी फाउंडेशन’ नाम से पहचान मिल गयी.

अब्दुल सत्तर इदी जीवनी Biography of Abdul Sattar Edhi in Hindi

असल मायने में अब्दुल साहब के इस जनकल्याणकारी संगठन का विस्तार तब हुआ, जब 1957 में उन्होंने करांची में फैली महामारी के लिए लोगों से चंदा इकट्ठा कर के टेंट, निःशुल्क चिकित्सा एवं दवाइयों की व्यवस्था की. जितने लोगों का ईदी फाउंडेशन ने इलाज करवाया उन्हीं की दुआओं ने इसे कामयाबी के गगन चुम्बी शिखर तक पहुंचा दिया. धीरे-धीरे ईदी फाउंडेशन सड़क से घायल लोगों को अपने एम्बुलेंसों में अस्पताल पहुँचाने, मृतकों को दफ़नाने, अनाथ बच्चों को सहारा देने, गरीब बेसहारा लोगों को सहारा देने जैसे नेक कार्य भी करने लगी.

किसी समय में सड़क पर भीख मांग के जुटाए पैसों से एक पुरानी वैन एम्बुलैंस खरीदने वाले अब्दुल साहब ने अपनी अंतिम साँस लेने तक 1500 एम्बुलेंसें खड़ी कर दीं, जो आज भी विश्व की सबसे बड़ी एम्बुलेंस सेवा का कीर्तिमान बनाए हुए है.

सम्मान एवं पुरस्कार

 १९९७ इदी फाउन्डेशन, गिनीज बुक में

1988 लेनिन शान्ति पुरस्कार

1986 रमन मैगसेसे पुरस्कार

1992 पाल हैरिस फेलो रोटरी इन्टरनेशनल फाउन्डेशन (Paul Harris Fellow Rotary International Foundation)

2000ء अन्तर्राष्ट्रीय बालजन पुरस्कार (International Balzan Prize)

26 मार्च 2005 आजीवन उपलब्धि पुरस्कार (Life Time Achievement Award)

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