जोश मलीहाबादी (अंग्रेज़ी: Josh Malihabadi, वास्तविक नाम: शब्बीर हसन खान, जन्म: 5 दिसंबर, 1894 – मृत्यु: 22 फ़रवरी, 1982) 20वीं शताब्दी के महान् शायरों में से एक थे। ये 1958 तक भारत में रहे फिर पाकिस्तान चले गए। ये ग़ज़ल और नज़्मे तखल्लुस ‘जोश’ नाम से लिखते थे और अपने जन्म स्थान का नाम भी आपने अपने तखल्लुस में जोड़ दिया तो पूरा नाम जोश मलीहाबादी हुआ।
प्रसिद्ध उर्दू शायर “जोश” मलीहाबादी (Josh Malihabadi) को उनकी क्रांतिकारी नज्मो के कारण अंग्रेजो के जमाने में “शायरे इन्कलाब” की उपाधि दी गयी थी और लोग उन्हें पढ़ते हुए जेल चले जाते थे | उनमे अभिव्यक्ति की अद्भुद क्षमता थी | वे शब्दों में आग भर सकते थे और दिलो को दहका सकते थे | बाद में पाकिस्तान चले जाने के कारण उनका विरोध भी बहुत हुआ लेकिन उनकी शायरी कभी भुलाई न जा सकेगी |
जोश (Josh Malihabadi) एक ऊँचे घराने में पैदा हुए थे | वे बड़े नफासतपसंद लेकिन साथ ही बड़े निडर ,साहसी और भावुक थे | जिन मुशायरो में मुल्ला लोगो की संख्या अधिक होती , उसमे वे चुन-चुनकर ऐसी नज्मे पढ़ते थे जिनमे उन्हें फटकारा गया हो | सरकारी लोगो की महफिल होती तो अपनी मशहूर नज्म “मातमे आजादी” पढने लगते और स्त्रियों की संख्या अधिक होती तो “हाय जवानी हाय जवानी” गाने लगते | मुल्ला लोग नाक-भौ सिकोड़ते ,दफ्तरों के बाबू चेमे गोइयाँ करते और स्त्रियाँ वाक आउट कर जाती लेकिन जोश टस से मस नही होते |
भारी भरकम देह और रोबीले व्यक्तित्व के मालिक “जोश” मलीहाबादी (Josh Malihabadi) अक्से मिलने वालो पर व्यंग्य करते और उन्हें फटकारते सुनाई देते थे | वे कोई गलत शब्द या वाक्य सुनने को तैयार नही होते थे | पूरा नाम शब्बीर हसन खां , तखल्लुस “जोश” था | 5 दिसम्बर 1894 को आमो के प्रसिद्ध कस्बे मलीहाबाद (जिला लखनऊ) के एक जागीरदार घराने में उनका जन्म हुआ था | बचपन से ही बहुत बदमिजाज थे | बच्चो को छड़ी से अनाप-शनाप पीटने में बहुत मजा आता था |
व्यवसाय
1 9 25 में, जोश ने हैदराबाद के रियासत में उस्मानिया विश्वविद्यालय में अनुवाद के काम की निगरानी शुरू कर दी थी। हालांकि, उनके प्रवास समाप्त हो गया, जब उन्होंने खुद को हैदराबाद के निजाम, राज्य के तत्कालीन शासक के खिलाफ एक नाज लिखने के लिए निर्वासित पाया।
इसके तुरंत बाद, उसने पत्रिका कालीम (सचमुच, उर्दू में “स्पीकर”) की स्थापना की, जिसमें उन्होंने भारत में ब्रिटिश राज से स्वतंत्रता के पक्ष में लेख लिखे। उनकी कविता हुसैन औ इनकिलैब (हुसैन और क्रांति) ने उन्हें शायर-ए-इंक्विलाब (क्रान्ति का कवि) का खिताब जीता। इसके बाद, वह स्वतंत्रता संग्राम (हालांकि, बौद्धिक क्षमता में) में सक्रिय रूप से शामिल हो गए और उस युग के कुछ राजनैतिक नेताओं, विशेष रूप से जवाहरलाल नेहरू (बाद में स्वतंत्र भारत के पहले प्रधान मंत्री बने) के करीब बन गए। 1 9 47 में भारत में ब्रिटिश राज के अंत के बाद, जोश प्रकाशन आज-काल के संपादक बने।
शायरी और प्रकाशन
जोश उर्दू साहित्य में उर्दू पर अधिपत्य और उर्दू व्याकरण के सर्वोत्तम उपयोग के लिए जाने जाते है | आपका पहला शायरी संग्रह सन 1921 में प्रकाशित हुआ जिसमे शोला-ओ-शबनम, जुनून-ओ-हिकमत, फ़िक्र-ओ-निशात, सुंबल-ओ-सलासल, हर्फ़-ओ-हिकायत, सरोद-ओ-खरोश और इरफ़ानियत-ए-जोश शामिल है | फिल्म डायरेक्टर W. Z. अहमद की राय पर आपने शालीमार पिक्चर्स के लिए गीत भी लिखे इस दौरान आप पुणे में रहे | आपकी आत्मकथा का शीर्षक है यादो की बारात |
जोश पकिस्तान में
जवाहर लाल नेहरु के मनाने पर भी जोश सन 1958 में पकिस्तान चले गए उनका सोचना था की भारत एक हिन्दू राष्ट्र है जहा हिंदी भाषा को ज्यादा तवज्जो दी जायगी न की उर्दू को, जिससे उर्दू का भारत में कोई भविष्य नहीं है | पकिस्तान जाने के बाद आप कराची में बस गए और आपने मौलवी अब्दुल हक के साथ में “अंजुमन-ए-तरक्की-ए-उर्दू” के लिए काम किया | आप पकिस्तान में अपनी मृत्यु तक अर्थात फरवरी २२, १९८२ तक इस्लामाबाद में ही रहे | फैज़ अहमद फैज़ और सय्यद फखरुद्दीन बल्ले दोनों आपके करीबी रहे और दोनों सज्जाद हैदर खरोश ( जोश के पुत्र) और जोश के मित्र थे | फेज अहमद फैज़ जोश की बीमारी के दौरान इस्लामाबाद आये थे | सय्यद फखरुद्दीन बल्ले जोश और सज्जाद हैदर खरोश के साथ जुड़े रहे |

उर्दू के लिए भारत छोड़ा
जवाहरलाल नेहरू के मनाने पर भी जोश सन 1958 में पाकिस्तान चले गए। उनका सोचना था कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र है जहाँ हिंदी भाषा को ज्यादा तवज्जो दी जायगी न की उर्दू को, जिससे उर्दू का भारत में कोई भविष्य नहीं है। पकिस्तान जाने के बाद ये कराची में बस गए और आपने मौलवी अब्दुल हक के साथ में “अंजुमन-ए-तरक़्क़ी-ए-उर्दू” के लिए काम किया। जोश मलीहाबादी पकिस्तान में अपनी मृत्यु तक अर्थात् 22 फ़रवरी, 1982 तक इस्लामाबाद में ही रहे। फैज़ अहमद फैज़ और सय्यद फ़खरुद्दीन बल्ले दोनों इनके क़रीबी रहे और दोनों सज्जाद हैदर खरोश (जोश के पुत्र) और जोश के मित्र थे। फैज़ अहमद फैज़, जोश की बीमारी के दौरान इस्लामाबाद आये थे। सैय्यद फ़खरुद्दीन बल्ले जोश और सज्जाद हैदर खरोश के साथ जुड़े रहे।