बेनजीर भुट्टो जीवनी Biography of Benazir Bhutto in Hindi

बेनज़ीर भुट्टो  पाकिस्तान की १२वीं (1988 में) व १६वीं (1993 में) प्रधानमंत्री थीं। रावलपिंडी में एक राजनैतिक रैली के बाद आत्मघाती बम और गोलीबारी से दोहरा अक्रमण कर, उनकी हत्या कर दी गई। पूरब की बेटी के नाम से जानी जाने वाली बेनज़ीर किसी भी मुसलिम देश की पहली महिला प्रधानमंत्री तथा दो बार चुनी जाने वाली पाकिस्तान की पहली प्रधानमंत्री थीं। वे पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की प्रतिनिधि तथा मुसलिम धर्म की शिया शाखा की अनुयायी थीं।

बेनजीर भुट्टो का जन्म 21 जून 1953 में जमींदार परिवार में हुआ था1 उन्होंने अपने पिता जुल्फिकार अली भुट्टो की सियासी विरासत संभालते हुए पाकिस्तान की उथलपुथल भरी राजनीति में प्रवेश किया था तथा वर्ष 1988 में पहली बार देश की प्रधानमंत्री बनी थी

उनका कार्यकाल पूरा नहीं हो सका और 20 महीने बाद ही उन्हें भ्रष्टाचार के आरोप में इस पद से हटा दिया गया1 1993 में वह दूसरी बार देश की प्रधानमंत्री बनी लेकिन वर्ष 1996 में उन्हें इस पद से फिर हटना पड़ा।

पाकिस्तान में लोकतंत्र की बहाली के लिए पहले भी आंदोलन चलाने वाली बेनजीर भुट्टो हाल में ही अपना स्वैच्छिक निर्वासन खत्म कर गत 18 अक्तूबर को पाकिस्तान लौटी थीं। स्वदेश लौटने पर स्वागत रैली के दौरान कराची में भी उनके काफिले को आतंकवादियों ने निशाना बनाया था लेकिन वह बच गई थीं।

चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने अल कायदा और अन्य आतंकवादी संगठनों की तीखी आलोचना की थी तथा सरकार पर आतंकवाद से निपटने में असफल रहने का आरोप लगाया था। राजनीतिक हलकों में यह अनुमान लगाया जा रहा था कि श्रीमती भुट्टो देश की अगली प्रधानमंत्री होंगी।

राजनीतिक सफर के दौरान ही बेनजीर ने एक सफल व्यापारी आसिफ अली जरदारी के साथ 18 दिसंबर 1987 को निकाह किया था। यह विवाह बहुत उनके लिए बहुत भाग्यशाली रहा तथा अगले ही वर्ष वह दुनिया के किसी मुस्लिम देश की पहली प्रधानमंत्री बनी।

पढाई पूरी करने के बाद देश लौटना :

अमेरिका और इंग्लैंड में पढाई करने के बाद Benajir Bhutto सन 1977 में पाकिस्तान अपने वतन पहुंची. लेकिन वतन वापसी के कुछ दिनों के बाद दुर्भाग्य वश इनके पिता व उस समय के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार गिर गई. सन 1977 के समय एक बहुत ही दयनीय घटना घटी, जब उनके पिता चुनाव जीतकर सत्ता में आये, पर उनपर एक कलंक यह लगा कि उन्होंने चुनाव में गड़बड़ी की है. उनके पिता के खिलाफ विरोध होने लगा और इसी का फायदा उस समय के सेना प्रमुख जनरल जिया उल हक ने उठाया और जुल्फिकार अली भुट्टो को बंदी बना के नजर बंद कर दिया.

जनरल जिया उल हक ने शासन की बागडोर अपने हाथ में ले ली और जुल्फिकार पर अपने सहयोगियों की हत्या का आरोप लगा और 4 अप्रैल 1979 में उनके पिता को फांसी दे दी गई और पाकिस्तान सैनिक सरकार ने बेनजीर को भी हिरासत में ले लिया. इन्हें सन 1979 से 1984 तक कैद हुई. सन 1984 में बेनजीर रिहा हुई और उन्हें विदेशी वीजा मिल गया, इसके बाद वे लंदन जाकर रहने लगी.

सन 1985 में बेनजीर के भाई शाहनवाज की मौत हो गई और अपनी भाई की अंतिम क्रिया के लिए बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान पहुचीं. जहाँ एक बार फिर सैनिक सरकार के विरोध में चल रहे प्रदर्शन के नेतृत्व के आरोप में उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन जल्दी ही उन्हें रिहा कर दिया गया. इसके बाद वहां आम चुनावों की घोषणा की गई.

प्रधानमंत्री काल

1988 में बेनज़ीर भारी मतों से चुनाव जीत कर आईं और पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनीं। वे किसी इस्लामी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं। दो साल बाद 1990 में उनकी सरकार को पाकिस्तान के राष्ट्रपति ग़ुलाम इशाक ख़ान ने बर्ख़ास्त कर दिया। 1993 में फिर आम चुनाव हुए और वे फिर विजयी हुईं। उन्हें 1996 में दोबारा भ्रष्टाचार के आरोप में बर्ख़ास्त किया गया। पहली बार प्रधानमंत्री निर्वाचित होने के समय बेनज़ीर लोकप्रियता के शिखर पर थीं। उनकी ख्याति विश्व स्तर पर सर्वप्रमुख महिला नेता की थी। लेकिन दूसरी बार सत्ता से बेदखल किए जाने तक उनकी छवि पूरी तरह बदल चुकी थी। पाकिस्तान का एक बड़ा तबका उन्हें भ्रष्टाचार और कुशासन के प्रतीक के रूप में देखने लगा।

बेनजीर भुट्टो जीवनी Biography of Benazir Bhutto in Hindi

अनेक विश्लेषकों के अनुसार बेनज़ीर के पतन में उनके आसिफ़ ज़रदारी का हाथ रहा है, जिन्हें भ्रष्टाचार के आरोप में जेल की सजा भी काटनी पड़ी थी। भ्रष्टाचार के मामलों में दोषी ठहराए जाने के बाद बेनज़ीर ने 1999 में पाकिस्तान छोड़ दिया और संयुक्त अरब इमारात के नगर दुबई में आकर रहने लगीं। उनकी अनुपस्थिति में पाकिस्तान की सैनिक सरकार ने उन पर लगे भ्रष्टाचार के विभिन्न आरोपों की जाँच की और उन्हें निर्दोष पाया गया। वे 18 अक्टूबर 2007 में पाकिस्तान लौटीं।

उसी दिन एक रैली के दौरान कराची में उन पर दो आत्मघाती हमले हुए जिसमें करीब 140 लोग मारे गए, लेकिन बेनज़ीर बच गईं थी। इसके कुछ ही दिन बाद 27 दिसम्बर 2007 को एक चुनाव रैली के बाद उनकी हत्या कर दी गई। उनकी हत्या तब हुई, जब वे रैली खत्म होने के बाद बाहर जाते वक्त अपने कार की सनरूफ़ से बाहर देखते हुए समर्थकों को विदा दे रही थीं। उनकी मौत से पाकिस्तान में लोकतंत्र की बहाली पर प्रश्नचिन्ह लग गया है।

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