एक ऐसा पराक्रमी राजा था जो विश्व विजय के अभियान पर निकला था और कुछ प्रदेशो को छोडकर उसने पुरे विश्व पर विजय प्राप्त की थी इसलिए उसे विश्व विजेता सिकन्दर के नाम से जाना जाता है |विश्व विजेता सिकन्दर ने भले ही पुरे विश्व पर विजय प्राप्त की थी लेकिन वो भारत में घुसने में सफल नही हो सका था जो उसका सपना अधुरा रह गया था
सिकन्दर के पिता का नाम फिलीप था। 329 ई. पू. में अपनी पिता की मृत्यु के उपरान्त वह सम्राट बना। वह बड़ा शूरवीर और प्रतापी सम्राट था। वह विश्वविजयी बनना चाहता था। सिकन्दर ने सबसे पहले ग्रीक राज्यों को जीता और फिर वह एशिया माइनर (आधुनिक तुर्की) की तरफ बढ़ा।
उस क्षेत्र पर उस समय फ़ारस का शासन था। फ़ारसी साम्राज्य मिस्र से लेकर पश्चिमोत्तर भारत तक फैला था। फ़ारस के शाह दारा तृतीय को उसने तीन अलग-अलग युद्धों में पराजित किया। हँलांकि उसकी तथाकथित “विश्व-विजय” फ़ारस विजय से अधिक नहीं थी पर उसे शाह दारा के अलावा अन्य स्थानीय प्रांतपालों से भी युद्ध करना पड़ा था।
मिस्र, बैक्ट्रिया, तथा आधुनिक ताज़िकिस्तान में स्थानीय प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था। सिकन्दर भारतीय अभियान पर ३२७ ई. पू. में निकला। ३२६ ई. पू. में सिन्धु पार कर वह तक्षशिला पहुँचा। वहाँ के राजा आम्भी ने उसकी अधिनता स्वीकार कर ली। पश्चिमोत्तर प्रदेश के अनेक राजाओं ने तक्षशिला की देखा देखी आत्म समर्पण कर दिया।
वहाँ से पौरव राज्य की तरफ बढ़ा जो झेलम और चेनाब नदी के बीच बसा हुआ था। युद्ध में पुरू पराजित हुआ परन्तु उसकी वीरता से प्रभावित होकर सिकन्दर ने उसे अपना मित्र बनाकर उसे उसका राज्य तथा कुछ नए इलाके दिए। यहाँ से वह व्यास नदी तक पहुँचा, परन्तु वहाँ से उसे वापस लौटना पड़ा। उसके सैनिक मगध के नंद शासक की विशाल सेना का सामना करने को तैयार न थे।
वापसी में उसे अनेक राज्यों (शिवि, क्षुद्रक, मालव इत्यादि) का भीषण प्रतिरोध सहना पड़ा। ३२५ ई. पू. में भारतभुमि छोड़कर सिकन्दर बेबीलोन चला गया। जहाँ उसकी मृत्यु हुई।
जब केवल 20 वर्ष की उम्र में Alexander सिकन्दर राजा बन गया तो जवान राजा को देखकर पडौसी राज्यों ने बगावत कर दी | अब सिकन्दर ने भी पडौसी राज्यों पर हमला कर दिया और सब कुछ शांत होने पर यूनान की तरफ निकल पड़ा | अब सिंकन्दर थीब्स की तरफ निकला जहा पर यूनानी उसके खिलाफ विद्रोह कर रहे थे | सिकन्दर ने थीब्स के विद्रोही लोगो को समर्पण करने को कहा लेकिन उन लोगो के मना करने पर नाराज सिकन्दर ने 6 हजार लोगो को मार डाला और बचे लोगो को गुलाम बनाकर बेच दिया| सिकन्दर की इस क्रूरता से यूनानियो में विद्रोह खत्म हो गया|
इसके बाद सिकन्दर ने एथेंस के लोगो के साथ दयालुता दिखाई ताकि वो थीब्स में दिखाई क्रूरता को भूल जाए | अब यूनानी भी सिकन्दर के साथ मिल गये और इरान के खिलाफ लड़ाई में उसे अपना नेता चुना | अब एक दिन सिकन्दर मार्ग में एक महान दार्शनिक डीयोजिनिस से मिला जो उस समय धुप स्नान कर रहा था | जब सिकन्दर ने उससे पूछा कि “क्या राजा आपके लिए कुछ कर सकता है ” | डीयोजिनिस ने बस इतना उत्तर दिया किब ” इतना एहसान कर दो कि अपनी परछाई से धुप को मत रोको ” | सिकन्दर उससे इतना प्रभावित हुआ था कि अक्सर कहता था कि अगर वो सिकन्दर नही होता तो डीयोजिनिस बन जाता |
ऐतिहासिक उल्लेख
सिकन्दर को सबसे पहले एक गणराज्य के प्रधान के विरोध का सामना करना पड़ा, जिसे यूनानी ऐस्टीज़ कहते हैं, संस्कृत में जिसका नाम हस्तिन है; वह उस जाति का प्रधान था जिसका भारतीय नाम हास्तिनायन था । यूनानी में इसके लिए अस्टाकेनोई या अस्टानेनोई-जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है, और उसकी राजधानी प्यूकेलाओटिस अर्थात् पुष्कलावती लिखी गई है। इस वीर सरदार ने अपने नगरकोट पर यूनानियों की घेरेबंदी का पूरे तीस दिन तक मुकाबला किया और अंत में लड़ता हुआ मारा गया। इसी प्रकार आश्वायन तथा आश्वकायन भी आखिरी दम तक लड़े, जैसा कि इस बात से पता चलता है कि उनके कम से कम 40,000 सैनिक बंदी बना लिए गए। उनकी आर्थिक समृद्धि का भी अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि इस लड़ाई में 2,30,000 बैल सिकन्दर के हाथ लगे।
आश्वकायनों ने 30,000 घुड़सवार 38,000 पैदल और 30 हाथियों की सेना लेकर, जिनकी सहायता के लिए मैदानों के रहने वाले 7,000 वेतनभोगी सिपाही और थे, सिकन्दर से मोर्चा लिया। यह पूरी आश्वकायनों की क़िलेबंद राजधानी मस्सग[3] में अपनी वीरांगना रानी क्लियोफ़िस के नेतृत्व में आश्वकायनों ने “अंत तक अपने देश की रक्षा करने का दृढ़ संकल्प किया।” रानी के साथ ही वहाँ की स्त्रियों ने भी प्रतिरक्षा में भाग लिया। वेतनभोगी सैनिक के रूप में बड़े निरुत्साह होकर लड़े, परन्तु बाद में उन्हें जोश आ गया और उन्होंने “अपमान के जीवन की अपेक्षा गौरव के मर जाना” ही बेहतर समझा। उनके इस उत्साह को देखकर अभिसार नामक निकटवर्ती पर्वतीय देश में भी उत्साह जाग्रत हुआ और वहाँ के लोग भी प्रतिरक्षा के लिए डट गए।
अनमोल विचार
जिस तरह स्वर्ग में दो सूरज नहीं हो सकते उसी तह इस धरती में भी दो बादशाह नहीं हो सकते.
जिसके लिए पूरा विश्व भी कम पड़ गया. उसके लिए आज सिर्फ एक कब्र ही काफी है.
मैं अपने पिता का बहुत आभारी हूँ जिन्होंने मुझे यह जीवन प्रदान किया और अपने शिक्षको का आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने मुझे अच्छी तरह से जीना सीखाया.
मैं अपनी जीत के लिए कभी भी धोखा नहीं करता
हर आने वाला प्रकाश सूरज नही है.हर किसी का आचरण उसके भाग्य पर निर्भर करता है.बड़ा करने की सोचे तभी बड़ा पा सकोगे.
लगातार कोशिश करने वालो के लिए कुछ भी असम्भव नहीं होता.· मैं शेरो की उस सेना से नहीं डरता जिनका लीडर एक भेड़िया है बल्कि मैं भेड़ियों की उस सेना से डरता हूँ जिनका लीडर एक शेर होता है.